Saturday 11 December 2010

"IF U WANT TO FLY IN LIFE, STOP FLYING KITES"

Buzz It



दिल्ली की सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के तौर पर जाने-जाने वाले इंडिया हैबिटेट सैंटर में ओल्ड वर्ल्ड थिएटर फैस्टिवल के तहत कुल छह नाटकों का मंचन किया गया, जिसमें से एक रहा मम्ताज़ भाई पतंग वाले ... नाटक के लेखक और निर्देशक मानव कौल हैं ,जिन्होंने नाटक में एक कसाव बरकरार रखा है, ये कही भी बिखरता नहीं,

ये नाटक दो पात्रों बिक्की और मम्ताज़ भाई के इर्द-गिर्द घूमता है...मम्ताज़ एक पतंग बेचने वाला है.... बिक्की की नज़र में पतंग और मम्ताज़ भाई एक दूसरे के पूरक है, मम्ताज़ भाई से बेहतर पतंगबाज़ इस दुनिया में और कोई नहीं..और वो भी उन्हीं की तरह एक पतंगबाज़ बनना चाहता है...पर बिक्की की मां को उसका यूं पतगंबाजी करना पसंद नहीं..और इस तरह उसकी इस इच्छा को दबा दिया जाता है..

नाटक के एक मोड़ पर बिक्की का हीरो मम्ताज़ उसके लिए विलेन बन जाता है, दिल्ली से पहले इस नाटक का मंचन मुम्बई समेत कई अन्य शहरों में भी हो चुका है..नाटक की खासियत मंच का सही और संतुलित इस्तेमाल, और पात्रों का स्पष्ट उच्चारण भी है( जिसका अभाव कई बार एक अच्छे नाटक पर भी पानी फेर देता है ),

मानव ने इस नाटक में काफी़ तजुर्बे करने की कोशिश की है, जैसे अंतरद्वंद्ध के लिए एक चरित्र में दो कलाकारों का इस्तेमाल और पर्दे के पीछे बनने वाली कलाकृतियां जिसे दर्शकों ने काफी पसंद भी किया ,पात्रों के भावों और मंच पर होने वाली तमाम हलचलों को ध्वनि और प्रकाश के ज़रिये बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया है, जिसका श्रेय परदे के पीछे के लोगों को भी जाता है...नाटक को देखकर “द काइट राइडर” के कुछ एक दृश्य भी जहन में आजाते हैं


कुल मिलाकर नाटक दर्शकों को बांधे रखता है,मम्ताज़ भाई की भूमिका में आसिफ़ बसरा का अभिनय प्रभावित करता है, उमेश जगतप अंग्रेज़ी के अध्यापक अवस्थी की भूमिका में है जिन्हें बिक्की का यूं पतंगबाज़ी करना कतई पसंद नहीं है अपने संवादों और अभिनय से दर्शकों को गुदगुदाने में सफल रहे,

सौरभ नैयर और घनश्याम लालसा समेत सभी का अभिनय काबिल-ए- तारीफ रहा,
हाल ही में देश के जानेमाने लोगों ने प्रधानमंत्री से शास्त्रीय कला और धरोहर को बचाए जाने की अपील की है, ऑडिटोरियम की शुरुआती सीटों का यूं ख़ाली रह जाना भी उसी अपील को बल देता है

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