Friday 23 April 2010

कैफ़ी आज़मी

Buzz It


"आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है... आज की रात न फ़ुटपाथ पर नींद आएगी...सब उठो..
मैं भी उठूँ.... तुम भी उठो ...तुम भी उठो ...

कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी..."


(कैफ़ी आज़मी)


कैफ़ी आज़मी की कुछ खास नज़मों में से एक ...


Monday 12 April 2010

अठन्नी में बजाई है बिस्मिल्ला ख़ान ने शहनाई

Buzz It

तब उस्तादजी ने बड़े ही लाड़ से जबाब दिया- अरे,बेटी भारतरत्न इ लुंगिया को थोड़े ही न मिला है। लुंगिया का क्या है,आज फटी है,कल सिल जाएगा। दुआ करो कि ये सुर न फटी मिले।


एक मंदिर में केवल आठ आने में शहनाई बजाने वाले उस्ताद बिस्मिला ख़ान की शहनाई की तान से ही पूरे देश की सुबह होती थी। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अल सुबह बजने वाली मंगल ध्वनि के लिए उन्होंने विशेष एलपी तैयार कराया था।


पेंगुइन द्वारा प्रकाशित यतीन्द्र मिश्र की उस्ताद बिस्मिल्ला खान पर लिखित किताब ‘'सुर की बारादरी’ के मुताबिक़, इसके लिए 1957 में उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान साब ने एचएमवी के माध्यम से एक विशेष एलपी तैयार कराया था, जिसमें सुबह और शाम के अलग अलग सात रागों को तीन तीन मिनट के लिए बजाया गया है। बीते सालों में चौदह रागों का यह संग्रह अब आकाशवाणी और दूरदर्शन के मंगल ध्वनि का पर्याय बन चुका है।

21 मार्च 1916 में बिहार के डुमराव में जन्मे बिस्मिल्ला खां कहा करते थे कि संगीत के बहुत से राग हैं और उनसे बनने वाली बहुत सारी रागनियां है। बस यूं समझो कि बहुत सारे पुत्र हैं और उनकी भार्याएं हैं। उनसे पैदा होने वाले बच्चे नवासे और नवासियां हैं।

गंगा जमुनी तहजीब की प्रतिमूर्ति ख़ान साहब ने एक संस्मरण में बताया, ‘‘पंचगंगा घाट पर बाला जी का मंदिर है, जहां हम और हमारे बड़े भाई शम्सुद्दीन घंटों रियाज़ करते थे..वहां पर हमने आठ आने में शहनाई बजाई है।’’ किताब में बकौ़ल ख़ान साहब, ‘‘हम बजा रहे थे, तब तक मंदिर से पंडित जी निकलकर आये और बोले - ‘हियां आ लड़के। तू रोज हियां बजाता है, मंदिर के सामने आरती के समय बजा दिया कर।’...हमने कहा एक रूपया लेंगे...फिर सौदा अठन्नी में पटा।’’

इस्लाम में संगीत की कथित मनाही के बारे में उन्होंने किताब में कहा, ‘‘संगीत वह चीज़ है, जिसमें जात पात कुछ नहीं है..संगीत किसी मज़हब का बुरा नहीं चाहता।..मुझे लगता है कि इस्लाम में मौसिक़ी को इसलिए हराम कहा गया कि अगर इस जादू जगाने वाली कला को रोका न गया, तो एक से एक फ़नकार इसकी रागनियों में डूबे रहेंगे और दोपहर, शाम की नमाज़ कज़ा हो जाएगी।’’


किताब में उन्होंने बनारस के बारे में कहा, ‘‘हमने कुछ पैदा नहीं किया है। जो हो गया, वह उसका करम है। हां अपनी शहनाई में जो लेकर हम चले हैं, वह बनारस का अंग है। जल्दबाजी नहीं करते बनारस वाले, बड़े इत्मीनान से बोल लेकर चलते हैं...ज़िदगी भर मंगलागौरी और पक्का महल में रियाज़ करते जवान हुए हैं तो कहीं न कहीं बनारस का रस टपकेगा हमारी शहनाई में।’’
बकौल यतीन्द्र मिश्र- 





तब उस्तादजी को 'भारत रत्न'भी मिल चुका था। पूरी तरह स्थापित और दुनिया में उनका नाम था। एक बार एक उनकी शिष्या ने कहा कि- उस्तादजी,अब आपको तो भारतरत्न भी मिल चुका है और दुनियाभर के लोग आते रहते हैं आपसे मिलने के लिए। फिर भी आप फटी तहमद पहना करते हैं,अच्छा नहीं लगता। उस्तादजी ने बड़े ही लाड़ से जबाब दिया- अरे,बेटी भारतरत्न इ लुंगिया को थोड़े ही न मिला है। लुंगिया का क्या है,आज फटी है,कल सिल जाएगा। दुआ करो कि ये सुर न फटी मिले।





पी.टी आई भाषा से साभार ( दीपक सेन )
यतीन्द्र मिश्र


'सुर की बारादरी’




अब चाहें तो सुन भी सकते हैं उस्ताद जी को  यहां और आगे की कड़ियों में