Saturday 14 July 2012

एस बी जॉन

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एस बी जॉन

आपने कब से गाना शुरू किया ?
रेडियो पाकिस्तान से (
20 may 1950 से रेडियो पाकिस्तान से गाया करते थे, मेहदी ज़हीर कम्पोज़र और गुलुकार ने इनका कोई कार्यक्रम सुना और इन्हें अपने यहाँ गाने का न्योता दिया ! उन दिनों फ़िल्मी धुनों पर असद्सा की गजले हुआ करती थी ‘सुनी हुई धुनें ‘ नाम का से उस दौर में और उन्होंने वहीँ से अपनी शुरुआत की !

फ़िल्मी दौर की शुरुआत भी एक तरह से यही से हुई ,और साथ ही फिल्म ‘सवेरा’ का भी काफी अहम योगदान रहा! नए नए लोगों को उन दिनों मोका मिला करता था !
मास्टर मंज़ूर ने पहली बार एस बी जॉन से मुलकात की और उन्होंने एस बी जॉन को सुना और उनसे वादा किया कि वो उनसे ज़रूर गवाएंगे ,उन्हें मोका दिया ! गीत रहा ‘तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है ‘ इसे गीत को आगे जाकर हमने हिंदी फिल्म में सुना ! पर हिंदी फिल्म में आने से पहले ही ये गीत पडोसी मुल्क पकिस्तान में पसंद किया जा चुका था !

कराची में जन्म हुआ ,पूर्वज दिल्ली से रहे ! बचपन में गानों से जुड़े , पंडित रामचंद्र त्रिवेदी से शुरूआती संगीत सीखा और वोही उनके पहले और आखिरी गुरु रहे !


शिक्षा –
10th तक पढ़ें ,एअर कंडीशन का काम सीखा ,और गाने गाते हुए भी इसी पेशे में बने रहे ,
पूरा नाम – सनी
पिता का नाम –जॉन
दादा - बेन्जमन
परिवार – रोबिन और ग्लेन जॉन दो बेटे

उनसे पूछा गया कि आपको फिलहाल क्लास्सिकल/लाइट सिंगिंग में कौन पसंद हैं –उनका जवाब रहा अमानत अली के बाद मेहदी हसन ही आज ऐसे कलाकार हैं जो उन्हें पसंद रहे , फरीदा खानम और इकबाल बानो भी इनकी पसंद में रहे !
एस बी जॉन को शायरी /अदब का काफी शोक था
अपना लगे वो बैरी ,पराया कभी लगे
गम की दावा कभी वो गमे जिंदगी लगे

Tuesday 15 May 2012

राग- हंसध्वनि -मुकुल शिवपुत्र

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Raag hamsadhwani - mukul shivputra
वातापि गणपतिम् भजेहम्
वारणास्यम् वरप्रदम् श्री
भूतादि संसेवित चरणम्
भूतभौतिक प्रपंच भरणम्
वीतरागिणम् विनुतयोगिनम्
विश्वकारणम् विघ्नवारणम्
पुरा कुंभ संभव मुनिवर प्रपूजितम् त्रिकोण मध्यगतम्
मुरारी प्रमुखाद्युपासितम् मूलाधार क्षेत्रस्थितम्
परादि चत्वारि वागात्मकम् प्रणव स्वरूपम् वक्रतुंडम्
निरंतरम् नितिल चंद्रकंदम् निजवामकार विध्रुतेक्षु दंडम्
करांबुजपाश बीजापुरम् कलुशविदूरम् भूताकारम्
हरादि गुरुगुह तोषित बिंबं हंसध्वनि भूषित हेरंबम्



Raag hamsadhwani mukul shivputra
pic courtesy :ajay som ji
audio courtesy : puskraj ji

Sunday 29 April 2012

कुछ रंग पंकज मलिक के संग

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audio courtesy :BHAVITA JI

Tuesday 24 April 2012

'14 रात की भई चांदनी' -एन .एल .पुरी

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कुछ गीत जब हम पहली बार सुनते हैं, और आवाज़ कानों को जानी पहचानी लगे तो बस गीत सुनते जाते हैं ,ये नहीं देखते कि इसे गाने वाला कौन हैं , पर हाँ एक नज़र खुद की जानकारी के लिए देख लिया जाता है कि गीत किसने लिखा है और संगीत किस का है ! ऐसी ही एक आवाज़ थी 50 के दौर के एक गायक की, नाम था 'एन .एल .पुरी '!और पूरा 'नाम नरेंद्र नाथ पुरी'

जिन्हें अगर आप पहली बार सुने तो लगेगा कि शायद गुज़रे दौर के 'सी .एच. आत्मा ' को ही सुन रहे हो ! असल में कुछ एक नाम हैं भी ऐसे जो बिल्कुल एक सी आवाज़ का भ्रम पैदा करते हैं -जगमोहन को भी इसी फेहरिस्त में शामिल किया जा सकता ! कहा जाता है कि एन.एल पुरी ने ज़्यादा गीत तो नहीं गाये बमुश्किल 5-6 गीत ही स्वरबद किये ,जिसमें एक गीत '14 रात की भई चांदनी ' ओ .पी नय्यर का बनाया हुआ एक गैर फ़िल्मी गीत रहा !


This is a non-filmy song rendered by Narendra Nath Puri...Nayyar Saheb had composed this song before coming to Bombay..NL Puri had sung 2 songs for OP Nayyar Saheb...A soulful composition by OP Nayyar and wonderful flavor of Sitar in this mesmerizing number..

SONG : Chaudah Raat Ki Baee Chandni
singer :N.L PURI
song : 14 रात की भई चांदनी

1.YE KAUN AA RAHA HAI-NON FILM गीत

2.MUSKURA PHIR MUSKURA-NON FILM GEET

3.SITARON KE DIPAK (1&2 )5435,6215- NON FILM GEET

4.CHOWDA RAAT KI BHAIYE - (1&2)(4717,8453)NON FILM GEET



(audio courtesy : arun ji)

5.PUNAR JANAM NE MILONA (1 & 2 )(4718,8454)-NON FILM GEET

6.SAPNON ME MILE (1&2)( 5434,6216)

http://www.hindisongstt.com/databasebymusic.php?filter=n-o

Monday 23 April 2012

जगमोहन 'सुरसागर'

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जगनमोयमित्रा (जगमोहन 'सुरसागर' )
जन्म 6 सितम्बर 1918 को
40 और 50 के दौर में काफ़ी सक्रिय रहे ,
लता मंगेशकर और जगमोहन सुरसागर -1955 में आई फ़िल्म 'सरदार' के लिए पहली और आखिरी बार संगीत भी दिया और इसी फ़िल्म में लता मंगेशकर ने जगमोहन सुरसागर के लिए पहली और आखिरी बार गाया ' प्यार की ये तल्खियाँ '



जगमोहन सुरसागर और सपन जगमोहन जोड़ी के 'जगमोहन ' दोनों अलग अलग व्यक्ति है , जगमोहन सुरसागर ने कमलदास गुप्ता के संगीत निर्देशन में अपने दौर में काफ़ी गीत गाये ! गायक होने के साथ -साथ संगीतकार के तौर भी जगमोहन सुरसागर जाने जाते हैं ! इन्होने मधुराज और फय्याज़ हाशमी के लिखे कई गैर -फ़िल्मी गीत गाये ! कुछ एक फिल्मों में पार्श्वगायक के तौर पर काम किया -जिसमे मेघदूत(1945-' वर्षा के पहले बादल ') शामिल है !

Jagmohan sursagar
सन 1955 में आई फ़िल्म 'सरदार' के लिए पहली और आखिरी बार संगीत भी दिया ! सरदार में बीना राय, अशोक कुमार और निगार सुल्ताना मुख्य भूमिकाओं में नज़र आये थे !
इसी फ़िल्म में लता मंगेशकर ने जगमोहन सुरसागर के लिए पहली और आखिरी बार गाया ' प्यार की ये तल्खियाँ ' ! जगमोहन एक रूढ़िवादी ज़मीदार परिवार से संबंध रखते थे , जहाँ गाना बजाना सही नहीं समझा जाता था, इसी बीच जगमोहन का ध्यान शास्त्रीय संगीत की तरफ भी आकर्षित हुआ और उन्होंने एक अच्छे गुरु की खोज करना शुरू कर दिया , जो कि पोंडेचेरी के दिलीप कुमार रॉय पर आकर खत्म हुई ! जिनसे द्रुपद , ठुमरी ,टप्पा सीखा !

HMV के लिए टैगोर के लिखे गीतों को गाकर जगमोहन बंगाल के घर घर में मशहूर हो गए और वहीँ 1945 में जगनमोयमित्रा 'सुरसागर ' के तौर पर जाने जाने लगे ! और फ़िल्म 'मेघदूत' के गीतों ने उन दिनों रेडियो पर काफ़ी धूम मचा दी थी !

कुछ गीत -
1. उल्फ़त की सज़ा दो - फय्याज़ हाश्मी

2. दीवाना तुम्हारा -फय्याज़ हाशमी
3.मुझे ख़ामोश रहने दो - राजेन्द्र कृष्ण (संगीत -जगमोहन )
4. प्रेम की रुत चली गयी -फय्याज़ हाश्मी
5.दिल देकर दर्द लिया
6.यह ना बता सकूंगा मैं
7.आँखों में छुपा लो
8.ये माना तुमके तुम से -रमेश पन्त -(संगीत -जगमोहन )
9.जल रहे हैं अरमान -फय्याज़ हाश्मी
10.नीरस मैं आस प्रभु
11.मेरी ऑंखें बनी दीवानी
12.प्यारी तुम कितनी
13.मत कर साज़ सिंगार
14. तुम मेरे सामने
15.सपनो में मुझको
16 मुझे ना सपनों से बहलाओ
17.ओ वर्षा के पहले बादल -फय्याज़ हाश्मी
18.चाँद है मेहमान ,गीत : मधुराज ,(संगीत -जगमोहन )
19. ये चाँद नहीं
20. एक बार मुस्कुरा दो
21. उस रंग को पायल में
(जगमोहन के कुछ गीत यहाँभी







pyar ki ye talkhiyan -film :sardar
lata Mangeshkar
kaif irfani (arfani)
jagmohan sursagar






बाक़ी गीत यहाँ


और एक दिन ये कलाकार भी अपने पीछे छोड़ गया अपने कुछ ऐसे गीत जो ना आज कहीं बजते हैं , ना उनकी कहीं गुंजाईश ढूंढी जाती है !

Legendary singer Jagmohan no more

KOLKATA, Sept 4: Legendary Bengali singer of yesteryears Jagonmoy Mitra, fondly known as ‘Jagmohan’, whose rendition of love songs enthralled hearts of millions, died at his Juhu residence in Mumbai last night following a cardiac arrest, family sources said today.

Mitra, 85, who was recuperating from brain haemorrhage, is survived by three sons and two daughters.

The veteran singer, known as ‘Jagmohan’ to the Hindi music world, had over 400 music records to his credit in a career spanning over 40 years.

A Padmashree Award winner for his contribution to the Indian music, he had given music in many films.

Mitra will be long remembered by his countless admirers for his song ‘Chithi’ (a letter to wife).

Born on September 6, 1918, Mitra brought out his first disc ‘Sawana Rate Jadi’ in 1939 and soon caught the imagination of Bengali music lovers with such ever-green hits like ‘Ami Duranta Baishaki Jhar’, ‘Ei Ki Go Sheh Gaan’, ‘Tumi Aaj Koto Dure’ besides scores of Rabindra sangeet and Najrul songs.

Mitra, who settled in Mumbai in the 1950s, had also authored an autobiography titled after his first recorded song ‘Sawana Rate Jadi’.

Contributing his golden voice in over 100 Hindi discs, he directed music in ‘Sharhad’, besides being popular in Gujarati and Marathi music world.

A near contemporary of Hemant Kumar and eminent Bengali singer late Dhananjoy Bhattacharjee, Mitra popularised Indian music in the US, Britain and East African countries. (PTI)

Friday 6 April 2012

लकड़ी की काठी

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वनीता शर्मा, गुरप्रीत कौर और गौरी बापट (Vanita Sharma, Gurpreet Kaur and Gauri Bapat )का गाया हुआ , गुलज़ार के बोल और पंचम(R.d burman ) का संगीत !
(Gurpreet Kaur is Uttam Singh's daughter, who is better known as Preeti Uttam) and Gauri Bapat is daughter of Pt. Ulhas Bapat(Santoor)
The child actors are Urmila Matondkar [Eldest girl], Aradhana [the youngest girl, now a mother of 2 children and a music teacher!] and Jugal Hansraj [the boy].



गीत से जुड़ी एक छोटी सी बातचीत यहाँ

Tuesday 27 March 2012

फ़िलहाल तस्वीरों में 'शाळा' !

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फ़िल्म 70 के दौर के आस पास की पृष्ठभूमि लिए है ,काफ़ी रूमानी सा एहसास लेकर ,जैसे किसी फूल को खिलते
देखने का एहसास कराती हो , फ़िल्म देखते हुए कई मर्तबा अपने आप ही आप मुस्कुरा उठते हैं !
अभिनय के साथ साथ कलाकारों ( ख़ासकर जिस तरीके से फ़िल्म के बाल कलाकारों ने अभिनय किया है ) के 'भाव ' आपको कहानी के साथ बांधे रखते हैं ! फ़िल्म में एडिटिंग और कैमरा वर्क काफ़ी प्रभावित करता है !



वरुण ग्रोवर कहते हैं '
'उम्र के सबसे मासूम, complicated, रोमांचक दौर पर बनी एक ऐसी फिल्म जो गहरी भी है,
विस्तार वाली भी, और मज़ेदार भी. (और एक धुंधलाते से nostalgia जितनी रूमानी भी.)पूरे साल में ऐसा ३ या ४ फिल्मों के बारे में ही कहा जा सकता है'' !







यूं तो फ़िल्म मराठी भाषा में है,पर रेखा भारद्वाज के सूफियाना और मदहोश करने वाले इस गीत का जुडना इसे और ख़ास बना देता है ! जैसे उन सभी जज़्बात को जिस्म पर पड़ने वालीं बोंदों की तरह महसूस करा रही हों !

COMPOSED BY: ALOKANANDA DASGUPTA
SINGER: REKHA BHARDWAJ
LYRICS: RAJESHWARI DASGUPTA
EDITED BY: B. MAHANTESHWAR

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(लुकमान )

Sunday 25 March 2012

रू-ब-रू गुलज़ार !

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गुलज़ार दिल्ली आने वाले हैं ! ये सुनते ही मैंने तय कर लिया था कि इस बार नहीं चूकुंगा ,अमूमन वो हर साल दिल्ली आते रहते हैं (ग़ालिब के जन्म दिन पर )पर किसी वजह से अपना मिलना ना हो पाया (सुनना ) !

बहरहाल 25 मार्च को दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में पेंगुइन की ओर से आयोजित 'स्प्रिंग फ़ेस्टिवल ' के आखिरी दिन गुलज़ार साहब को आना था ओर वो आये भी ! और इस तरह आये कि कुछ एक पलों के लिए ही सही माहोल खुशनुमा बन गया !

सफ़ेद चमचमाते कुर्ते और पीली जूतियाँ(मोजडियां(?))पहने गुलज़ार सभी की आँखों में एक दम से समा गए थे !
गुलज़ार साहब के साथ मंच पर उनकी कई कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद करने वाले पवन के वर्मा भी मौजूद रहे ! कार्यक्रम में गुलज़ार साहब ने अपनी लिखी और अनुवाद की हुईं कुछ एक कविताएँ भी सुनाईं और उनका अंग्रेज़ी अनुवाद पवन वर्मा ने किया !

तकरीबन एक घंटे तक चले इस कार्यक्रम का माहोल भी काफ़ी खुशनुमा और कई बर गुदगुदा देने वाला रहा ! जहाँ उन्होंने कविताओं का अनुवाद करने के दौरान आने वाली मुश्किलों की भी बात कही !

दिल्ली के अपने पुराने दिन हो या पंचम ( संगीतकार आर .डी. बर्मन ) का साथ सभी अनुभवों को गुलज़ार सुनने वालों के साथ बांटते रहे ! उनकी सबसे छू लेने वाली कविता थी 'मेघना ' जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए लिखी थी !

( रिकॉर्डिंग,मोबाइल से की गयी है ,इसलिए ऑडियो के साथ समझौता कर ही लीजिए :P )



(लम्हों में ....)



(*pic courtesy : Priyanka Khot,and Penguin India)

वीडियो यहाँ पर

Saturday 17 March 2012

'ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना ' - फैयाज़ हाश्मी

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जितना मुझे याद पड़ता है ,मैंने फैयाज़ हाश्मी का लिखा गीत सबसे पहले लता जी
(लता मंगेशकर ) की आवाज़ में सुना था , और जैसे ही सुना ,सुनता रह गया , तकरीबन 4 मिनट के उस गीत को मैंने एक बार से ज़्यादा ही सुना होगा , गीत के बोल थे

'ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना ' लता जी ने इस गीत को पंकज मलिक को श्रद्दांजली के तौर पर अपनी एलबम में शामिल किया था ! उनकी आवाज़ के साथ ताल मिलाते उस तबले की धीमी थाप ,बांसुरी और सितार ने मानो मुझे अपने वश में कर लिया था !

फैयाज़ हाश्मी का जन्म सन १९२० में कलकत्ता में हुआ (born in 1920) बचपन में ही लिखने पढ़ने का शोक और माहोल मिलने से उन्होंने 13 -14 साल की उम्र में ग़ज़लें लिखना शुरू कर दिया !

उनके पिता सयद मोहम्मद हुसैन हाश्मी दिलगीर ,एक मशहूर शायर और कई नाटक भी लिख चुके थे, साथ ही तब के एक प्रसिद्द थिएटर 'मदन थिएटर ' में बतौर निर्देशक एक जाना पहचाना नाम बन चुके थे ! फैयाज़ हाश्मी के इस शेर से ही इस बात का इल्म हो जाता है की आगे चल कर ये बच्चा ज़माने में क्या कुछ करने वाला है ''चमन में गुंचा -ओ -गुल का तबस्सुम देखने वालो ,कभी तुमने हसीन कलियों की का मुरझाना भी देखा है ''!
( ''Chaman main Ghuncha-o-gul ka tabassum dekhne walo – Kabhi tum ne haseen kalyoon ka murjhana bhi dekha hai”) यहाँ ये बताना भी लाज़मी है कि फैयाज़ की उम्र तब काफ़ी कम रही और सातवीं में पढ़ा करते थे !

9वीं में आते आते फैयाज़ मुशायरों में भी हिस्सा लेने लगे,उनकी पहली शायरी की किताब 'राग रंग 'नाम से 1944 हिंदुस्तान में छपी ! उनकी लिखी कई कविताएँ अदबी दुनिया , अदबी लतीफ़ , बीसवीं सदी , शमा, निगार, अमर जदीद ,'अमृत बाजार पत्रिका ' जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं ! कविताओं ,शायरी की अलावा फैयाज़ ने कई कव्वालियां और नात भी लिखे ! उन्होंने देश भक्ति गीत जैसे (Ae Quiad-e-Azam tera ehsan hai ehsan” & “ Suraj Kare Salam – Chanda kare Salam”.) भी लिखे !

गीतकार शायर तो वो थे ही साथ ही संवाद लेखक भी रहे ! फैयाज़ के लिखे “Tasveer Teri Dil Mera Behla Na Sakhe Gi”से तलत महमूद रातों रात चमक उठे ! उस समय फैयाज़ के लिखे तमाम गीतों में कमाल दास गुप्ता का ही संगीत हुआ करता था ! नजरुल इस्लाम ने फैयाज़ के लिखे गीतों और अशार की तारीफ में कुछ इन शब्दों में की ''Tum mann main doob kar mann ka bhed nikaltey ho. Aasan shubdoon mein mushkil baat kehna buhut mushkil hay”!

फैयाज़ ना सिर्फ़ हिंदी उर्दू के जानकार रहे बल्कि उन्होंने ब्रज भाषा का भी अपने गीतों में काफ़ी अच्छे से और खुलकर इस्तेमाल किया और आनेवाली नस्लों के लिए एक उदाहरण पेश किया

बीस साल की उम्र में ही एक बेहद संजीदा गीत लिखने वाले फैयाज़ हाश्मी के बारे में खालिद हसन कहते हैं :

''मैं हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही देशो में मशहूर रहे गीतकार / शायर फैयाज़ हाश्मी से सिर्फ़ एक ही बार मिल सका , और अब इस बात का अफ़सोस है कि मैं उनसे दोबारा मिलने का मोका क्यों ना तलाश सका ''!

ये 1968 के आस पास की बात है मैं काम के सिलसिले से लहोर में ही मौजूद था , वहीँ एक दिन मेरे एक दोस्त ने मेरा परिचय काले चश्मे पहने हुए उस शख्स से कराया जो बड़ी आराम से एक कुर्सी पर बैठा हुआ था ,और अपनी चाय की चुस्कियों का मज़ा लूट रहा था ,''ये हैं फयाज हाश्मी '' मेरा दोस्त बोला !

मैंने उनसे हाथ मिलाया ,पर मैं अभी भी नहीं समझ पा रहा था कि वो कौन हैं ,मेरा दोस्त एक बार फिर बोला ,''यस द फयाज़ हाश्मी '',और आखिर में मैं समझा कि मेरे सामने वो शख्स बैठा है जिसका कि कोई सानी नहीं था ! वो वहां क्या कर रहे थे इसका मुझे कोई इल्म नहीं ! सदाअत हसन मंटो या “Prince of Minerva Movietone” Sadiq Ali or Mumtaz Shanti or Rehana or Meena Shorey, की तरह पाकिस्तान ने इनकी भी कदर नहीं जानी ,और ये अफ़सोस की बात है कि फयाज़ हाश्मी के काम को ना हम पहचान सके और ना उनको वो दर्जा दिला पाए जिसके कि वो हकदार रहे , ना ही उस इंडस्ट्री ने उनकी सुद लेनी की ज़रूरत समझी ,जिसमे उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया ,और ना ही उस राज्य ने जिसकी उन्होंने नागरिकता चुनी !

ग्रामाफोन कम्पनी ऑफ इंडिया के साथ अपने जीवन की शुरुआत करने वाले हाश्मी को 1947 में पाकिस्तान के नष्टप्राय संगीत को संजोने और उसके संरक्षण के लिए भेजा गया , लाहौर जो कि ,कलकत्ता और बम्बई के बाद EMI का तीसरा ख़ास सेंटर था एक तरह से पूरी तरह से बिगड़ चुका था ,इसके लिए फय्याज़ हाश्मी ने वहां के साज़िंदों और गायकों को उनकी काबिलयत के मुताबिक खोजना और इकट्ठा करना शुरू किया ! 1947 में हुई उस उथल पुथल के बाद लाहौर में हुई पहली रिकॉर्डिंग का श्रेय भी हाश्मी को ही जाता है !

ये फय्याज़ हाश्मी ही थे जिन्होंने Munawwar Sultana (not the actress), Farida Khanum and Zeenat Begum, जैसी नामचीन हस्तियों को हम सब के सामने लाया !

कलकत्ता (हय्यात खान लेन ) में रहने के दौरान फैयाज़ हाश्मी के पिता मदन थिएटर के लिए बतौर लेखक ,
निर्देशक काम किया करते थे ! घर पर शुरुआत से ही शायरों का आना जाना और मुशायरों , महफिलों का जमना होता रहता था , जिसे फेय्याज़ हाश्मी भी बड़े चाव से सुनते ,और समझते भी थे !

वहीँ 'इंडियन शेक्सपीयर ' कहलाने वाले आगा हशर कश्मीरी भी इनके पड़ोसी थे ! फैयाज़ की ही लिखी एक और ग़ज़ल को जो कि काफ़ी मकबूल भी हुई थी को मास्टर फ़िदा हुसैन ने गाया था जिसके बोल थे 'कदर किसी कि हमने ना जानी ,है मोहोब्बत है जवानी ' ( Qadr kisi ki hum ne na jaani: Haa’i mohabbat haa’i jawani).

20 साल की उम्र में ग्रामाफोन कम्पनी ने फैयाज़ को अपने यहाँ अस्थाई गीतकार के तौर पर रख लिया ,वहीँ कम्पनी में बतौर संगीतकार कमल दास गुप्ता जुड़े हुए थे ! कमल दास गुप्ता और फेय्याज़ दोनों ने आगे चलकर काफ़ी अच्छा कम किया !

1941 में फैयाज़ ने अपना पहला गीत ''Sab din ek samaan nahin tha'' लिखा ,जिसे तलत महमूद ने गाया ,
साथ ही ''Tasveer teri dil mera behla na sakay gi'' को भी काफ़ी शोहरत मिली !. इसके अलावा पंकज मलिक के लिए 'ये रातें ये मौसम ...हेमंत कुमार, जुतिका रॉय, फिरोजा बेगम और जगमोहन के लिए पहला हिंदी /उर्दू गीत ! कुल मिला कर फेयाज़ ने तकरीबन ५०० (500 ) गैर फ़िल्मी गीत लिखे , फिर चाहे गीत दर्द में डूबा हो या फिर दिकश /रोमांटिक ! फैयाज़ ने भारत और पाकिस्तानी फिल्मों में भी गीत लिखे !




मूल लेख यहाँ


हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले
ना थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले

है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या क़सूर इस में
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दगी से पहले

मेरा इश्क़ जल रहा है ऐ चाँद आज छुपा जा
कभी प्यार था हमें भी तेरी चांदनी से पहले

मै कभी ना मुस्कुराता ग़र मुझे ये इल्म होता
की हजारों ग़म मिलेंगे मुझे इक ख़ुशी से पहले

ये अजीब इम्तेहाँ हैं की तुम ही को भुलाना है
मिले कब थे इस तरह हम तुम्हे बे-दिली से पहले
-फैयाज़ हाश्मी

2) टकरा ही गई मेरी नज़र उन की नज़र से।
धोना ही पडा हाथ मुझे क़ल्ब-ओ-जिगर से।

इज़हार-ए-मोहब्बत न किया बस इसी डर से,
ऐसा ना हो गिर जाऊं कहीं उन की नज़र से।

ऐ! जोक-ए-तलब, जोश-ए-जुनून ये तो बतादे,
जाना है कहाँ और हम आए हैं किधर से।

'फैयाज़' अब आया है जुनूं जोश पे अपना,
हंसता है ज़माना मैं गुज़रता हूँ जिधर से।

Tuesday 13 March 2012

रुह के पार होता ,नदिया के पार का संगीत

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केशव प्रसाद मिश्र के उपंन्यास 'कोहबर की शर्त' पर आधारित फिल्म 'नदिया के पार ' 1982 में प्रदर्शित हुई ,जो कि अपनी सादगी से कईयों के मन में घर कर गयी ! फिल्म की कहानी के साथ -साथ इसका संगीत भी काफ़ी प्रभावित करने वाला रहा , ग्रामीण परिवेश में रची इस कहानी की एक और ज़रूरत थी वो था इसका 'मौलिक संगीत' का होना !

राजश्री प्रोडक्शन के साथ लंबे अरसे तक जुड़े रहे रविन्द्र जैन इस फिल्म में बतौर गीतकार और संगीतकार दोनों ही भूमिकाओं में नज़र आये , जो इस फिल्म में कहीं भी अपने काम से निराश नहीं करते ! फिल्म के संगीत की सबसे ख़ास बात ये रही कि इसका संगीत कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करता है ! फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण होने से फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे, जो कि उसके किरदारों और भावना को पूरी तरह से व्यक्त करते है !

फिल्म के गायकों की अगर बात करें तो सुरेश वाडकर ,सुशील कुमार ,चंद्रानी मुखर्जी ,हेमलता और जसपाल सिंह की आवाज़ स्वरों का रविन्द्र जैन ने सही तरीके से प्रयोग किया है ,पर अधिकतर गीत हेमलता और जसपाल सिंह की आवाज़ में हैं और दोनों काफ़ी हद तक इसमें न्याय करते हैं ! फिल्म की पटकथा ,संवाद ,निर्देशन गोविंद मूनीस का था !


कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया -'चन्दन और गुंजा' के आपसी संवादों को बेहद खूबसूरती से रविन्द्र जैन एक गीत की शक्ल देते हैं, जिसमे दोनों की आपसी छेडछाड को दर्शाया गया है ,असल में इसी गीत के दौरान दोनों के बीच का मनमुटाव खत्म होकर 'प्रेम की शक्ल लेता है ,जोकि फिल्म के इस गीत में साफ़ झलकता हैं !

बतौर गीतकार रविन्द्र जैन इस फिल्म में काफ़ी जमे हुए नज़र आते हैं ,भाषा और विषय पर उनकि पकड़ का अनदाज़ा फिल्म के गीतों को सुनकर आसानी से लगाया जा सकता है !

वही हेमलता का गाया हुआ 'जब तक पूरे ना हो फेरे सात'.. इस विवाह गीत में मिटटी की खुशबू ना सिर्फ स्वरों में ,बल्कि गीत के बोलों और उसके वाद्य सयोंजन में भी साफ़ नज़र आती है !गीत में कोरस का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है !

एक गाँव के उस माहौल को ये गीत काफ़ी अच्छे से बयाँ करता नज़र आता है ,जहाँ आस पड़ोस की महिलाएं इकट्ठी होकर विवाह गीत गाती हैं ! संगीतकार रविन्द्रजैन ने शहनाई ,तबला ,संतूर ,ढोलक ,बांसुरी ,वॉयलिन का भी काफ़ी किफ़ायत और समझदारी से प्रयोग किया है !

फिल्म
का अगला गीत 'जोगी जी वाह, जोगी जी'..सुशिल कुमार ,हेमलता ,चंद्रानी मुख़र्जी और जसपाल सिंह का गाया एक कर्णप्रिय गीत है ,ऐसे गीतों में रविन्द्र जैन का कोई सानी नहीं ,गीत में आंचलिकता का भरपूर रंग नज़र आता है ! गीत को सुनकर ये कहा जा सकता है कि फिल्म के मुख्य कलाकरों में से एक सचिन पर गायक जसपाल सिंह की आवाज़ बिलकुल सटीक बैठती है !

हेमलता ,जसपाल सिंह के नाम भले ही आज कुछ लोग भुला चुके हों पर जब कभी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों और उनके संगीत की बात होगी तो 'नदिया के पार' को भुलाया नहीं जा सकता ! 'गुंजा रे ,चन्दन '.... काफ़ी कम वाद्यों के इस्तेमाल से भी एक अच्छी रचना बन सकती इसकी मिसाल सुरेश वाडकर और हेमलता का गाया ये प्रेम गीत है, जिसमे बासुरी और ढोलक और कहीं कहीं वॉयलिन पूरे गीत में अपनी झलक देते रहते हैं , इस गीत के अंतरे काफ़ी लंबे होने पर भी बोझिल नहीं करते ,वैसे इस गीत में सुरेश वाडकर हेमलता से काफ़ी आगे नज़र आते !

' साँची कहे तोरे आवन से ... इस गीत की शुरूआती धुन (prelude) ही आपको एक तरह से पूरे गीत के साथ जोड़े रखती है , बांसुरी और ढोलक पर पड़ने वाली थाप और उस पर जसपाल सिंह के ऊँचे सुर एक तरह की उमंग लिए हुए है ,जो कि पर्दे पर सचिन बखूबी निभाते हुए भी नज़र आते हैं , एक दम सटीक ,और झूमने पर मजबूर करते हुए ,रिश्तों पर आधारित गीतों की अगर एक फेहरिस्त बनाई जाये तो उसमें इस गीत को रखना लाज़मी लगता है !गीत की लोकप्रियता इसी बात से आंकी जा सकती है कि राजश्री फ़िल्म्स ने इस फिल्म के हिंदी रूपांतरण (हम आपके हैं कौन ) में इसी तरह के एक गीत को शामिल किया था (धिकताना धिकताना धिकताना ....)

सन् 1973 में आई 'सौदागर' रविन्द्र जैन की राजश्री बैनर के लिए पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने संगीत दिया था। 'तूफान, गीत गाता चल, तपस्या, चितचोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, पहेली, अंखियों के झरोखे से, सुनयना, गोपाल कृष्ण, राधा और सीता, न्याय, मान अभिमान, नदिया के पार, अबोध, बाबुल, विवाह ,और एक विवाह ऎसा भी, में रविन्द्र जैन ने संगीत दिया !

गीतों के बोलों और संगीत की अगर बात की जाये तो संगीत की कम समझ रखने वाला व्यक्ति भी इन धुनों को बेहद आसानी से ना सिर्फ याद रख सकता है बल्कि गुन गुना भी सकता है कुल मिला कर इस फिल्म के संगीतकार और गीतकार रविन्द्रजैन फिर साबित कर देते हैं कि उनकी धुनें आज भी अपना माधुर्य लिए हुए हैं ,ख़ास बात ये भी रही कि फिल्म के तमाम गीत कम मशहूर गायकों के गाये हुए पर फिर भी अपने बोलों और धुनों के चलते घर घर में मशहूर हुए

Sunday 8 January 2012

Hindi film Geet Kosh

Buzz It

Music's foot soldier

by SRAVASTI DATTA


 MUSIC Harmandir Singh 'Hamraaz' did what the Film Archive of India couldn't do – he undertook the compilation of Hindi film songs from the 1930s to 1980, titled Geet Kosh. His interest rests on pure passion and dedication DEDICATIONHarmandir Singh: ‘My search then began for songs rarely heard on radio One man achieved what established Institutes, the Indian film industry and even the Government could not—compile a collection of Hindi film songs spanning five decades (1931 to 1980), documented in five volumes. Based in Kanpur, Harmandir Singh “Hamraaz” is widely respected among music lovers for his single-minded determination and years of intense research and hard work to compile “Hindi film Geet Kosh”. What began as a hobby soon developed into a professional pursuit. “My mother and maternal grandmother — who was an excellent singer too — were music lovers. I developed my passion for music from them. The idea of compiling Hindi film songs germinated while I was still in school. I used to listen to Radio Ceylon that had a large collection of Hindi film songs. A particular programme ‘Vyaka Geetanjali' that was aired frequently — in which listeners actively participated — further inspired me to pursue compiling Hindi film songs. I took time out, while working in State Bank of India, to pursue this project. ” Harmandir accessed other sources too. “Feroze Rangoonwala's 1969 work ‘Indian Filmography', which listed all censored Hindi films from 1931 till 1969. It became a foundation work for me. There was one problem though, it contained only the names of the production company, title of the film, director, music director and artists', but no comprehensive information on Hindi film songs. To fill this gap, I used to listen to Vividh Bharati and Radio Ceylon and note down information on all the songs played.” Harmandir's research evolved in stages. “My search then began for songs rarely heard on radio. At this point, I came across ‘Madhuri', a Times of India publication, a well-known Hindi magazine, published fortnightly. I wrote in it appealing to music lovers to help me with ‘Geet Kosh'''. “I found texts from the 1920s, in which the producer had to submit important information on the film to the Censor Board. It contained the full text of all the songs. But here too there was a small problem; the singers of all the songs weren't listed. To fill this gap, I corroborated information that I got from HMV gramophone records that I had purchased.” Sources, at times, came from unexpected places. “R.K. Lal, a local music lover from Indore, helped me to purchase booklets from the 1930s and 1940s from Shankar Lal's bookstore, which was converted into a paan shop. The shopkeeper did not allow anyone to enter his shop, he even refused me entry. After some convincing, he allowed me to access the booklets. The place was dusty and it took me hours to sift and sort through the texts, re-arrange and catalogue them with a lot of help from R.K. Lal. The booklets cost one rupee but I managed to buy each of the booklets for 25 ps.” Undeterred by obstacles, Harmandir had to face one last hurdle — to find a publisher for “Geet Kosh”. “The money that I received as bonus from my employer and support from music lovers helped me to collect Rs. 25, 000, quite an amount in those days. That money was spent in publishing just Volume three.” No one could believe that a project of this magnitude could be achieved by a single person. Harmandir recounts an interesting incident. “Dr. Yasin Dalal, who was the head of journalism at Rajkot (Saurashtra University), once openly announced, ‘I was sure before I received Harmandir's compilation that I would receive stones: first, because Kanpur is a notorious city and second, I thought it humanly impossible for a single individual to get such a compilation published! I remember that incident clearly,” Harmandir laughs and says. Harmandir barely received Institutional support. “A certain gentleman asked me why I hadn't sought Government aid. Then he told me that it was good I hadn't as no help would be forthcoming. I later found out that he was the Cultural Minister of Gujarat!” Harmandir laments that Institutes such as the National Film Archive of India have contributed little to the compilation of Hindi film songs. “They have taken no initiative on their own to compile Hindi film songs, the information they have received have been handed down to them. I spent a lot of time in the library there, where I accessed old Hindi film magazines with help from my friends G.C. Sharma and B.N. Chatterjee. ” However, Volume Three was published first in 1980. “One contributor, Ratan Lal Kataria from Kekri district in Ajmer contributed thousand rupees and insisted that Volume One be published, but I could not publish it first. I knew that it wouldn't sell as it dealt with an older period of Hindi film songs. It took me seven to eight years to publish it. Volume 1 was finally released in 1988.” Harmandir was particular that each fact, even the smallest of it, was accurate. “There have been times when even the directors of movies got the name of the music director wrong. But I didn't go by even the most reliable person's memory. I cross-checked details repeatedly.” Harmandir has embarked on his next challenge — to make “Geet Kosh” available online. “Sudhir Kapur from Delhi recently developed software for data entry. The entire exercise will cost two lakhs. It's crucial that the data is accurate. There are many ardent music lovers, all of them are enthusiastic. What is required is dedication to achieve the goal of digitising ‘Geet Kosh'''. For details log onto hamraaz.org. SRAVASTI DATTA