(श्री मुकुल शिवपुत्र का चित्र)
मुकुल शिवपुत्र का जन्म सन1956 में हुआ। पिता शिवपुत्र सिद्धरमैया कोमकली यानी पं.कुमार गंधर्व ने उन्हें छोटी उम्र में ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में पारंगत कर दिया। इसके बाद मुकुल जी ने केजी गिंदे से ध्रुपद- धमार और एमडी रामनाथन से कर्नाटक संगीत सीखा। खयाल के अलावा वे भक्ति और लोगगीत गाना भी पसंद करते हैं।भारतीय शास्त्रीय संगीत के इक्कीसवीं सदी के गायकों में उन्हें संस्कृत में भी संगीत रचनाएं तैयार करने के लिए जाना जाता है । |
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पिछले दिनों देश के सांस्कृतिक जगत में भारी हड़कंप मच गया था ।हर तरफ़ से एक ही पुकार आ रही थी कहाँ है मुकुल ? कहाँ है मुकुल ?
मुकुल यानी मुकुल शिवपुत्र , यानी महान ख्याल गायक और किवदंती हो चुके कुमार गन्धर्व के सुपुत्र ।
कहने वाले कहते हैं कि सत्तावन वर्षीय देश के गिने -चुने शास्त्रीय साधकों में से एक इस फ़नकार ने अपने फ़न को अनुशासित ढंग से लिया होता तो अपने पिता की उम्र की कुल उम्र से पहले ही, कदाचित उनसे ज्यादा मशहूर हो गया होता ।
आज उसके पास नाम, दौलत , पद्मश्री , पद्मविभूषण तथा महफ़िलों का जमावड़ा होता ।
आज उसके पास नाम, दौलत , पद्मश्री , पद्मविभूषण तथा महफ़िलों का जमावड़ा होता ।
मुकुल जी ने अपने पिता से ही शास्त्रीय संगीत का ककहरा सीखना शुरू किया था , ख्याल गायकी भी उन्ही से सीखी ।
फिर ध्रुपद और धमार की सीख के .जी .गिंडे से ली। उन्होंने एक साल तक एम.डी रंगनाथन से कर्नाटक संगीत की दीक्षा भी ली । उन्होंने शास्त्रीय आधार पर लोकगीत और भजन तो गाए ही संस्कृत के कई श्लोक की भी प्रस्तुतियां दीं ।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत कि इस अपने तरह कि अकेली देन के बारे में मशहूर है कि उन्होंने पूरे 20 सालों तक तो सिर्फ मंदिरों में गाया ।
राग जसवंती को दूसरे पैठ वाले गायक आलाप था तानों से प्रभावित बनाते हैं , पर मुकुल जी उसे उसके असली रूप में पेश करते हैं ।
राग भैरवी का नाम लेते ही पंडित भीमसेन जोशी का नाम याद आजाता है ,मगर इस राग की मुकुल जी की प्रस्तुति ऐसी मंत्रमुग्ध करने वाली होती है कि इसकी समाप्ति पर श्रोता समूह तालियाँ बजाना ही भूल जाते हैं ।
इसके बावजूद उनपर पिता की स्टाइल का प्रभाव नहीं है । कई साल पहले TIMES OF INDIA
ने उन्हें ज्युनियर नहीं पंडित लिख दिया जिसने अपनी अथक साधना से बहुत कुछ पाया । पर मुकुल जी का एक पक्ष ये भी बताया जाता है कि आम महफ़िल सज गयी हो ।
सब कुछ ताम झाम जुट गया हो , तब भी आयोजकों की सांस ऊपर नीचे होती रहती है कि कहीं मुकुल जी एन वक़्त पर ग़ायब न हो जाएँ ।
बात तो तब बनती है जब पर्दा उठता है और वे तानपुरा लेकर मंच पर दिखते हैं ,
एक बार तो किसी आयोजन में गाकर लौट रहे थे ,बीच में कहीं कार रुकवाई और रफूचक्कर हो गये,और आयोजक उनको उनका पारिश्रमिक देने के लिए ढूँढ़ते रहे ।
फिर ध्रुपद और धमार की सीख के .जी .गिंडे से ली। उन्होंने एक साल तक एम.डी रंगनाथन से कर्नाटक संगीत की दीक्षा भी ली । उन्होंने शास्त्रीय आधार पर लोकगीत और भजन तो गाए ही संस्कृत के कई श्लोक की भी प्रस्तुतियां दीं ।
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत कि इस अपने तरह कि अकेली देन के बारे में मशहूर है कि उन्होंने पूरे 20 सालों तक तो सिर्फ मंदिरों में गाया ।
राग जसवंती को दूसरे पैठ वाले गायक आलाप था तानों से प्रभावित बनाते हैं , पर मुकुल जी उसे उसके असली रूप में पेश करते हैं ।
राग भैरवी का नाम लेते ही पंडित भीमसेन जोशी का नाम याद आजाता है ,मगर इस राग की मुकुल जी की प्रस्तुति ऐसी मंत्रमुग्ध करने वाली होती है कि इसकी समाप्ति पर श्रोता समूह तालियाँ बजाना ही भूल जाते हैं ।
इसके बावजूद उनपर पिता की स्टाइल का प्रभाव नहीं है । कई साल पहले TIMES OF INDIA
ने उन्हें ज्युनियर नहीं पंडित लिख दिया जिसने अपनी अथक साधना से बहुत कुछ पाया । पर मुकुल जी का एक पक्ष ये भी बताया जाता है कि आम महफ़िल सज गयी हो ।
सब कुछ ताम झाम जुट गया हो , तब भी आयोजकों की सांस ऊपर नीचे होती रहती है कि कहीं मुकुल जी एन वक़्त पर ग़ायब न हो जाएँ ।
बात तो तब बनती है जब पर्दा उठता है और वे तानपुरा लेकर मंच पर दिखते हैं ,
एक बार तो किसी आयोजन में गाकर लौट रहे थे ,बीच में कहीं कार रुकवाई और रफूचक्कर हो गये,और आयोजक उनको उनका पारिश्रमिक देने के लिए ढूँढ़ते रहे ।
इन सबके बाद भी बड़ी बात ये कि "स्पिक मैके " संस्था,(जो बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाती है ) इस कार्यक्रम में ये यायावर बिल्कुल पहुँच जाते है। फिर वो देश में कहीं भी हो रहा हो ।
कहा जाता है कि इस संगीतज्ञ के उखड़ने का एक कारण उनकी पत्नी की जलने से हुई मौत भी रहा,
मुकुल जी और इनकी पत्नी कैसे आदर्श संगीतज्ञ रहे होंगे ये इसी से स्पष्ट है कि बचपन में एक आद साल का उनका बेटा उनके रियाज़ के वक़्त सही सुर पर ताली बजाता , और ग़लत ग़लत सुर पर चिढ़ने लगता .
"मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा ,न ये दश्त मेरा, न ये चमन मेरा "
नवीन जैन
लेख आहा ज़िन्दगी से साभार ,
कहा जाता है कि इस संगीतज्ञ के उखड़ने का एक कारण उनकी पत्नी की जलने से हुई मौत भी रहा,
मुकुल जी और इनकी पत्नी कैसे आदर्श संगीतज्ञ रहे होंगे ये इसी से स्पष्ट है कि बचपन में एक आद साल का उनका बेटा उनके रियाज़ के वक़्त सही सुर पर ताली बजाता , और ग़लत ग़लत सुर पर चिढ़ने लगता .
"मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा ,न ये दश्त मेरा, न ये चमन मेरा "
नवीन जैन
लेख आहा ज़िन्दगी से साभार ,
गूगल पर मुकुल शिवपुत्र टाइप कर, उनके बारे में कुछ जानकारी खोजने लगा तो 8 ,550 result दिखे। असल में मुझे उनकी जन्म तिथि देखनी थी, यहाँ तक कि विकिपीडियामें उनकी मामुली जानकारी दे सकने वाला एक आद पेज भी नहीं बना आज तक, न जाने कितनी कंपनियाँ उनके नाम और काम से मोटी कमाई करती होंगी,पर ये कलाकार आज वो ख़ुदगुमनामी की ज़िन्दगी जी रहा है |
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(वी़डियो में मुख्य किरदार को अगर हम मुकुल जी की जगह रखें )
4 comments:
आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice
HAPPY HOLI
HAPPY HOLI
OK ,, one thing I don't get is that why people have problems with this guy mukul? its his life and he has the right to live it in the way he wants to. and he has no one to take care of anyway. and it all depends what one wants in his life. now why people complain about the man cos he dosen't give a damm!!! so stop mouring and do something useful rather then writing these kind of articles. by the way ,,, mukul is doing good and has a concert in Agra India next week.
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