वहीदा रहमान अपनी कुछ यादों के साथ .....
ये सिलसिला जैसे मानो पूरे साल भर चलता रहा और दिसम्बर आते -आते देवआनंद भी हमसे दूर चले गए ! शुरूआत हुई जनवरी से जब शास्त्रीय संगीत के स्तंभ कहे जाने वाले भीमसेन जोशी (किराना घराना ) इस दुनिया को अलविदा कह गए !
पर देखा जाए तो ये साल कला -साहित्य जगत पर काफी भारी सा रहा ! शम्मी कपूर, जगजीत सिंह, उस्ताद सुलतान खान, श्रीलाल शुक्ल ,
भूपेन हज़ारिका, हरगोविंद खुराना ,
मंसूर अली खान पटौदी, मशहूर फोटोग्राफर गौतम राजाध्यक्ष ,
मक़बूल फ़िदा हुसैन ,अन्नत पाई (popularly known as Uncle Pai ) ,और कम ही लोगों को याद रहने वाले संगीतकार दान सिंह
मक़बूल फ़िदा हुसैन ,अन्नत पाई (popularly known as Uncle Pai ) ,और कम ही लोगों को याद रहने वाले संगीतकार दान सिंह
(This year has seen departure of several people
who were pioneer of sorts for their chosen vocations in this country, or werealmost synonymous with that art-form itself. Gautam Rajadhyaksha to glamour photography, Bhimsen Joshi to Khayal, Hussain to fine-arts and Partap Sharma to voice-over. The golden voice behind many newsreels, documentaries and ad-films from 60's, 70's and and 80's, Partap Sharma was also a theatre veteran and playwright) (film : phir bhi)
देव साहब को 'पीटर पैन ' कहा जाता , जो सपने देखने और उन्हें हकीक़त बदलने की कोशिश में रहता
देव आनंद का असल नाम धर्म देव रहा (देव दत्त नहीं ) ,देव साहब ने 'धर्म को अपने नाम के आगे से हटा दिया, वो कहते हैं ''i took off 'Dharam' because dharam is a big problem in the world' so i just kept dev, sweet nice , Anand is my surname.''
पांच बहने और दो भाइयों के बीच उन्होंने दो भाइयों, दो बहनों को खोया ! पिता गुरदासपुर में वकील थे,देवसाहब को गुल्ली डंडा ,क्रिकेट, जैसे खेलों का बचपन से शोक था ! आगे की पढाई के लहोरे के गवर्मेंट कॉलेज में जाना चाहते थे पर पिता की माली हालत ठीक ना थी , इसी दौरान देव साहब की माँ की तबियत काफी खराब हुई , देव साहब उस दौरान अपनी माँ के काफी करीब आ गए , देव साहब की माँ ने उनके पिता से मरते हुए ये इच्छा ज़ाहिर की , कि वो देव को आगे पढ़ने दें !
जब Masters ( M.A. LITERATURE) के लिए आगे पढ़ना चाह रहे थे तो पिता ने अपनी मज़बूरी ज़ाहिर करते हुए उन्हें बैंक में नौकरी करनी की सलाह दी !
इसी के बाद उन्होंने बम्बई का रुख कर लिया ,सामने बॉम्बे सेंट्रल की कई ऊँची ऊँची इमारते थीं, और जेब में सिर्फ ३० रूपये थे !
१९४५ (1945) का वो दौर आया जब उन्होंने अपनी ज़रूरतों के लिए कुछ समय के लिए मिलट्री सेंसस ज्वाइन कर लिया ! जहाँ उन्हें सैनिकों के खत पढ़ने पढ़ते !
इसी दौरान प्रभात फिल्म्स में मिली पहली फिल्म के लिए काफी जदोजेहद भी करनी पड़ी ,बाबुराव पाई (Baburao Pai ) से तेज बरसात होने के बाद भी मिलने गए ,और मुलाक़ात के बाद ही माने ! बाबु राव पाई ने ही उनकी मुलाक़ात पी एल संतोषी से करवाई !
बाक़ी की बातें इस विडियो में :
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