Saturday, 17 March 2012

'ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना ' - फैयाज़ हाश्मी

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जितना मुझे याद पड़ता है ,मैंने फैयाज़ हाश्मी का लिखा गीत सबसे पहले लता जी
(लता मंगेशकर ) की आवाज़ में सुना था , और जैसे ही सुना ,सुनता रह गया , तकरीबन 4 मिनट के उस गीत को मैंने एक बार से ज़्यादा ही सुना होगा , गीत के बोल थे

'ये रातें ये मौसम ये हँसना हँसाना ' लता जी ने इस गीत को पंकज मलिक को श्रद्दांजली के तौर पर अपनी एलबम में शामिल किया था ! उनकी आवाज़ के साथ ताल मिलाते उस तबले की धीमी थाप ,बांसुरी और सितार ने मानो मुझे अपने वश में कर लिया था !

फैयाज़ हाश्मी का जन्म सन १९२० में कलकत्ता में हुआ (born in 1920) बचपन में ही लिखने पढ़ने का शोक और माहोल मिलने से उन्होंने 13 -14 साल की उम्र में ग़ज़लें लिखना शुरू कर दिया !

उनके पिता सयद मोहम्मद हुसैन हाश्मी दिलगीर ,एक मशहूर शायर और कई नाटक भी लिख चुके थे, साथ ही तब के एक प्रसिद्द थिएटर 'मदन थिएटर ' में बतौर निर्देशक एक जाना पहचाना नाम बन चुके थे ! फैयाज़ हाश्मी के इस शेर से ही इस बात का इल्म हो जाता है की आगे चल कर ये बच्चा ज़माने में क्या कुछ करने वाला है ''चमन में गुंचा -ओ -गुल का तबस्सुम देखने वालो ,कभी तुमने हसीन कलियों की का मुरझाना भी देखा है ''!
( ''Chaman main Ghuncha-o-gul ka tabassum dekhne walo – Kabhi tum ne haseen kalyoon ka murjhana bhi dekha hai”) यहाँ ये बताना भी लाज़मी है कि फैयाज़ की उम्र तब काफ़ी कम रही और सातवीं में पढ़ा करते थे !

9वीं में आते आते फैयाज़ मुशायरों में भी हिस्सा लेने लगे,उनकी पहली शायरी की किताब 'राग रंग 'नाम से 1944 हिंदुस्तान में छपी ! उनकी लिखी कई कविताएँ अदबी दुनिया , अदबी लतीफ़ , बीसवीं सदी , शमा, निगार, अमर जदीद ,'अमृत बाजार पत्रिका ' जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं ! कविताओं ,शायरी की अलावा फैयाज़ ने कई कव्वालियां और नात भी लिखे ! उन्होंने देश भक्ति गीत जैसे (Ae Quiad-e-Azam tera ehsan hai ehsan” & “ Suraj Kare Salam – Chanda kare Salam”.) भी लिखे !

गीतकार शायर तो वो थे ही साथ ही संवाद लेखक भी रहे ! फैयाज़ के लिखे “Tasveer Teri Dil Mera Behla Na Sakhe Gi”से तलत महमूद रातों रात चमक उठे ! उस समय फैयाज़ के लिखे तमाम गीतों में कमाल दास गुप्ता का ही संगीत हुआ करता था ! नजरुल इस्लाम ने फैयाज़ के लिखे गीतों और अशार की तारीफ में कुछ इन शब्दों में की ''Tum mann main doob kar mann ka bhed nikaltey ho. Aasan shubdoon mein mushkil baat kehna buhut mushkil hay”!

फैयाज़ ना सिर्फ़ हिंदी उर्दू के जानकार रहे बल्कि उन्होंने ब्रज भाषा का भी अपने गीतों में काफ़ी अच्छे से और खुलकर इस्तेमाल किया और आनेवाली नस्लों के लिए एक उदाहरण पेश किया

बीस साल की उम्र में ही एक बेहद संजीदा गीत लिखने वाले फैयाज़ हाश्मी के बारे में खालिद हसन कहते हैं :

''मैं हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही देशो में मशहूर रहे गीतकार / शायर फैयाज़ हाश्मी से सिर्फ़ एक ही बार मिल सका , और अब इस बात का अफ़सोस है कि मैं उनसे दोबारा मिलने का मोका क्यों ना तलाश सका ''!

ये 1968 के आस पास की बात है मैं काम के सिलसिले से लहोर में ही मौजूद था , वहीँ एक दिन मेरे एक दोस्त ने मेरा परिचय काले चश्मे पहने हुए उस शख्स से कराया जो बड़ी आराम से एक कुर्सी पर बैठा हुआ था ,और अपनी चाय की चुस्कियों का मज़ा लूट रहा था ,''ये हैं फयाज हाश्मी '' मेरा दोस्त बोला !

मैंने उनसे हाथ मिलाया ,पर मैं अभी भी नहीं समझ पा रहा था कि वो कौन हैं ,मेरा दोस्त एक बार फिर बोला ,''यस द फयाज़ हाश्मी '',और आखिर में मैं समझा कि मेरे सामने वो शख्स बैठा है जिसका कि कोई सानी नहीं था ! वो वहां क्या कर रहे थे इसका मुझे कोई इल्म नहीं ! सदाअत हसन मंटो या “Prince of Minerva Movietone” Sadiq Ali or Mumtaz Shanti or Rehana or Meena Shorey, की तरह पाकिस्तान ने इनकी भी कदर नहीं जानी ,और ये अफ़सोस की बात है कि फयाज़ हाश्मी के काम को ना हम पहचान सके और ना उनको वो दर्जा दिला पाए जिसके कि वो हकदार रहे , ना ही उस इंडस्ट्री ने उनकी सुद लेनी की ज़रूरत समझी ,जिसमे उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया ,और ना ही उस राज्य ने जिसकी उन्होंने नागरिकता चुनी !

ग्रामाफोन कम्पनी ऑफ इंडिया के साथ अपने जीवन की शुरुआत करने वाले हाश्मी को 1947 में पाकिस्तान के नष्टप्राय संगीत को संजोने और उसके संरक्षण के लिए भेजा गया , लाहौर जो कि ,कलकत्ता और बम्बई के बाद EMI का तीसरा ख़ास सेंटर था एक तरह से पूरी तरह से बिगड़ चुका था ,इसके लिए फय्याज़ हाश्मी ने वहां के साज़िंदों और गायकों को उनकी काबिलयत के मुताबिक खोजना और इकट्ठा करना शुरू किया ! 1947 में हुई उस उथल पुथल के बाद लाहौर में हुई पहली रिकॉर्डिंग का श्रेय भी हाश्मी को ही जाता है !

ये फय्याज़ हाश्मी ही थे जिन्होंने Munawwar Sultana (not the actress), Farida Khanum and Zeenat Begum, जैसी नामचीन हस्तियों को हम सब के सामने लाया !

कलकत्ता (हय्यात खान लेन ) में रहने के दौरान फैयाज़ हाश्मी के पिता मदन थिएटर के लिए बतौर लेखक ,
निर्देशक काम किया करते थे ! घर पर शुरुआत से ही शायरों का आना जाना और मुशायरों , महफिलों का जमना होता रहता था , जिसे फेय्याज़ हाश्मी भी बड़े चाव से सुनते ,और समझते भी थे !

वहीँ 'इंडियन शेक्सपीयर ' कहलाने वाले आगा हशर कश्मीरी भी इनके पड़ोसी थे ! फैयाज़ की ही लिखी एक और ग़ज़ल को जो कि काफ़ी मकबूल भी हुई थी को मास्टर फ़िदा हुसैन ने गाया था जिसके बोल थे 'कदर किसी कि हमने ना जानी ,है मोहोब्बत है जवानी ' ( Qadr kisi ki hum ne na jaani: Haa’i mohabbat haa’i jawani).

20 साल की उम्र में ग्रामाफोन कम्पनी ने फैयाज़ को अपने यहाँ अस्थाई गीतकार के तौर पर रख लिया ,वहीँ कम्पनी में बतौर संगीतकार कमल दास गुप्ता जुड़े हुए थे ! कमल दास गुप्ता और फेय्याज़ दोनों ने आगे चलकर काफ़ी अच्छा कम किया !

1941 में फैयाज़ ने अपना पहला गीत ''Sab din ek samaan nahin tha'' लिखा ,जिसे तलत महमूद ने गाया ,
साथ ही ''Tasveer teri dil mera behla na sakay gi'' को भी काफ़ी शोहरत मिली !. इसके अलावा पंकज मलिक के लिए 'ये रातें ये मौसम ...हेमंत कुमार, जुतिका रॉय, फिरोजा बेगम और जगमोहन के लिए पहला हिंदी /उर्दू गीत ! कुल मिला कर फेयाज़ ने तकरीबन ५०० (500 ) गैर फ़िल्मी गीत लिखे , फिर चाहे गीत दर्द में डूबा हो या फिर दिकश /रोमांटिक ! फैयाज़ ने भारत और पाकिस्तानी फिल्मों में भी गीत लिखे !




मूल लेख यहाँ


हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले
ना थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले

है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या क़सूर इस में
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दगी से पहले

मेरा इश्क़ जल रहा है ऐ चाँद आज छुपा जा
कभी प्यार था हमें भी तेरी चांदनी से पहले

मै कभी ना मुस्कुराता ग़र मुझे ये इल्म होता
की हजारों ग़म मिलेंगे मुझे इक ख़ुशी से पहले

ये अजीब इम्तेहाँ हैं की तुम ही को भुलाना है
मिले कब थे इस तरह हम तुम्हे बे-दिली से पहले
-फैयाज़ हाश्मी

2) टकरा ही गई मेरी नज़र उन की नज़र से।
धोना ही पडा हाथ मुझे क़ल्ब-ओ-जिगर से।

इज़हार-ए-मोहब्बत न किया बस इसी डर से,
ऐसा ना हो गिर जाऊं कहीं उन की नज़र से।

ऐ! जोक-ए-तलब, जोश-ए-जुनून ये तो बतादे,
जाना है कहाँ और हम आए हैं किधर से।

'फैयाज़' अब आया है जुनूं जोश पे अपना,
हंसता है ज़माना मैं गुज़रता हूँ जिधर से।

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