Tuesday, 13 March 2012

रुह के पार होता ,नदिया के पार का संगीत

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केशव प्रसाद मिश्र के उपंन्यास 'कोहबर की शर्त' पर आधारित फिल्म 'नदिया के पार ' 1982 में प्रदर्शित हुई ,जो कि अपनी सादगी से कईयों के मन में घर कर गयी ! फिल्म की कहानी के साथ -साथ इसका संगीत भी काफ़ी प्रभावित करने वाला रहा , ग्रामीण परिवेश में रची इस कहानी की एक और ज़रूरत थी वो था इसका 'मौलिक संगीत' का होना !

राजश्री प्रोडक्शन के साथ लंबे अरसे तक जुड़े रहे रविन्द्र जैन इस फिल्म में बतौर गीतकार और संगीतकार दोनों ही भूमिकाओं में नज़र आये , जो इस फिल्म में कहीं भी अपने काम से निराश नहीं करते ! फिल्म के संगीत की सबसे ख़ास बात ये रही कि इसका संगीत कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करता है ! फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण होने से फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे, जो कि उसके किरदारों और भावना को पूरी तरह से व्यक्त करते है !

फिल्म के गायकों की अगर बात करें तो सुरेश वाडकर ,सुशील कुमार ,चंद्रानी मुखर्जी ,हेमलता और जसपाल सिंह की आवाज़ स्वरों का रविन्द्र जैन ने सही तरीके से प्रयोग किया है ,पर अधिकतर गीत हेमलता और जसपाल सिंह की आवाज़ में हैं और दोनों काफ़ी हद तक इसमें न्याय करते हैं ! फिल्म की पटकथा ,संवाद ,निर्देशन गोविंद मूनीस का था !


कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया -'चन्दन और गुंजा' के आपसी संवादों को बेहद खूबसूरती से रविन्द्र जैन एक गीत की शक्ल देते हैं, जिसमे दोनों की आपसी छेडछाड को दर्शाया गया है ,असल में इसी गीत के दौरान दोनों के बीच का मनमुटाव खत्म होकर 'प्रेम की शक्ल लेता है ,जोकि फिल्म के इस गीत में साफ़ झलकता हैं !

बतौर गीतकार रविन्द्र जैन इस फिल्म में काफ़ी जमे हुए नज़र आते हैं ,भाषा और विषय पर उनकि पकड़ का अनदाज़ा फिल्म के गीतों को सुनकर आसानी से लगाया जा सकता है !

वही हेमलता का गाया हुआ 'जब तक पूरे ना हो फेरे सात'.. इस विवाह गीत में मिटटी की खुशबू ना सिर्फ स्वरों में ,बल्कि गीत के बोलों और उसके वाद्य सयोंजन में भी साफ़ नज़र आती है !गीत में कोरस का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है !

एक गाँव के उस माहौल को ये गीत काफ़ी अच्छे से बयाँ करता नज़र आता है ,जहाँ आस पड़ोस की महिलाएं इकट्ठी होकर विवाह गीत गाती हैं ! संगीतकार रविन्द्रजैन ने शहनाई ,तबला ,संतूर ,ढोलक ,बांसुरी ,वॉयलिन का भी काफ़ी किफ़ायत और समझदारी से प्रयोग किया है !

फिल्म
का अगला गीत 'जोगी जी वाह, जोगी जी'..सुशिल कुमार ,हेमलता ,चंद्रानी मुख़र्जी और जसपाल सिंह का गाया एक कर्णप्रिय गीत है ,ऐसे गीतों में रविन्द्र जैन का कोई सानी नहीं ,गीत में आंचलिकता का भरपूर रंग नज़र आता है ! गीत को सुनकर ये कहा जा सकता है कि फिल्म के मुख्य कलाकरों में से एक सचिन पर गायक जसपाल सिंह की आवाज़ बिलकुल सटीक बैठती है !

हेमलता ,जसपाल सिंह के नाम भले ही आज कुछ लोग भुला चुके हों पर जब कभी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों और उनके संगीत की बात होगी तो 'नदिया के पार' को भुलाया नहीं जा सकता ! 'गुंजा रे ,चन्दन '.... काफ़ी कम वाद्यों के इस्तेमाल से भी एक अच्छी रचना बन सकती इसकी मिसाल सुरेश वाडकर और हेमलता का गाया ये प्रेम गीत है, जिसमे बासुरी और ढोलक और कहीं कहीं वॉयलिन पूरे गीत में अपनी झलक देते रहते हैं , इस गीत के अंतरे काफ़ी लंबे होने पर भी बोझिल नहीं करते ,वैसे इस गीत में सुरेश वाडकर हेमलता से काफ़ी आगे नज़र आते !

' साँची कहे तोरे आवन से ... इस गीत की शुरूआती धुन (prelude) ही आपको एक तरह से पूरे गीत के साथ जोड़े रखती है , बांसुरी और ढोलक पर पड़ने वाली थाप और उस पर जसपाल सिंह के ऊँचे सुर एक तरह की उमंग लिए हुए है ,जो कि पर्दे पर सचिन बखूबी निभाते हुए भी नज़र आते हैं , एक दम सटीक ,और झूमने पर मजबूर करते हुए ,रिश्तों पर आधारित गीतों की अगर एक फेहरिस्त बनाई जाये तो उसमें इस गीत को रखना लाज़मी लगता है !गीत की लोकप्रियता इसी बात से आंकी जा सकती है कि राजश्री फ़िल्म्स ने इस फिल्म के हिंदी रूपांतरण (हम आपके हैं कौन ) में इसी तरह के एक गीत को शामिल किया था (धिकताना धिकताना धिकताना ....)

सन् 1973 में आई 'सौदागर' रविन्द्र जैन की राजश्री बैनर के लिए पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने संगीत दिया था। 'तूफान, गीत गाता चल, तपस्या, चितचोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, पहेली, अंखियों के झरोखे से, सुनयना, गोपाल कृष्ण, राधा और सीता, न्याय, मान अभिमान, नदिया के पार, अबोध, बाबुल, विवाह ,और एक विवाह ऎसा भी, में रविन्द्र जैन ने संगीत दिया !

गीतों के बोलों और संगीत की अगर बात की जाये तो संगीत की कम समझ रखने वाला व्यक्ति भी इन धुनों को बेहद आसानी से ना सिर्फ याद रख सकता है बल्कि गुन गुना भी सकता है कुल मिला कर इस फिल्म के संगीतकार और गीतकार रविन्द्रजैन फिर साबित कर देते हैं कि उनकी धुनें आज भी अपना माधुर्य लिए हुए हैं ,ख़ास बात ये भी रही कि फिल्म के तमाम गीत कम मशहूर गायकों के गाये हुए पर फिर भी अपने बोलों और धुनों के चलते घर घर में मशहूर हुए

2 comments:

Archana Chaoji said...

यादगार गीतों वाली यादगार फ़िल्म .....

deepak kumar garg said...

फिल्म नदिया के पार में इस उपन्यास की आधी कहानी ही प्रयोग हुई थी .उपन्यास की बाकी कहानी को लेकर नदिया के पार पार्ट 2 बननी चाहिए, जैसे पिछले वर्ष सचिन और राजश्री की फिल्म अखियों के झरोखों से फिल्म का पार्ट 2 फिल्म जाना पहचाना बनी थी